श्री कुंजबिहारी की आरती

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

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Last updated Tue, 21-Mar-2023 Hindi-gujarati

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।

श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।

लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक,

चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

  आरती कुंजबिहारी की…॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।

गगन सों सुमन रासि बरसै । बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग,

ग्वालिन संग, अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा ।

स्मरन ते होत मोह भंगा बसी शिव सीस,

जटा के बीच, हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद,

कटत भव फंद, टेर सुन दीन दुखारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की…॥